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गंगा बेहती हो क्युं ?

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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कुछ साल पहले देश की विषमताओं से दुःखी हो कर भारत के सुप्रसिध्ध गायक संगीतकार स्व.भुपेन हजारिका ने गंगा से कुछ सवाल किये थे ।

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विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ?……..
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को,
सबलसंग्रामी, समग्रोग्रामी, बनाती नहीं हो क्यूँ ?…………….

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..
अनपढ़ जन, अक्षरहीन, अनगिनजन, खाद्य विहीन, नेत्र विहीन, देख मौन हो क्यूँ ?…….
इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को,
सबलसंग्रामी, समग्रोग्रामी, बनाती नहीं हो क्यूँ ?…………….

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..
व्यक्ति रहे, व्यक्ति केंद्रित, सकल समाज, व्यक्तित्व रहित,
निष्प्राण समाज  को न छोडती हो क्यूँ ?………..
इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को,
सबलसंग्रामी, समग्रोग्रामी, बनाती नहीं हो क्यूँ ?…………….

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..

तेजस्विनी, क्यूँ ना रही, तुम निश्चय, चेतन हिन,
प्राणों में प्रेरणा देती है क्यूँ ?……………
उन्मद अवनी, कुरुषेत्र बनी, गंगे जननी, नवभारत में,
भीष्म रूपी, सूत समरजयी, जनती नहीं हो क्यूँ ?………….

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..
विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार नि-शब्द सदा,
ओ गंगा तुम, गंगा तुम, गंगा तुम,
ओ गंगा तुम, गंगा तुम,

गंगा बहती हो क्यूँ ?……………..
( खूद भुपेनदा की आवाज में सुन लिजिए । उन के संगीत में जादू है | मन को  निर्मल कर देता है । पर ये गीत मन को विषाद से भर देता है क्युं ? )

मेरा भी कुदरत से ऐसा ही सवाल है । भुपेनदा जैसी आत्मा को हमारे बीच से ले जाते हो क्युं ?

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