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कपाल पर आई डी का टेटू ।

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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कुछ खास जगहो पर नागरिकों की आई.डी मांगी जाती है तो उस का विरोध नही हो सकता । लेकिन हर जगह आई.डी मांगी जाने लगे तो मांगनेवालों की नियत पे सवाल खडे होते हैं और देनेवाले
नागरिकों की गुलामी मानसिकता ही साबित होती है ।
रेल में पास निकालने के लिए नाम ही काफी था । फोटो नही लगता था । लोग एक दुसरे के पास का उपयोग कर लेते थे । जैसे दो मित्र आपस में अपनी बाईक का उपयोग कर लेते है । उसमें कोइ अनैतिकता नही थी । रेल को पास के पैसे से मतकब था । ठीक है, रेल्वेने अपनी आय बढाने के चक्करं में पास के साथ फोटो लगाना जरूरी बनाया, जीस से सब को पास लेना जरूरी हो जाए । रेल की आय बढती है तो जनता को कोइ एतराज नही है । पास में फोटो लगाना स्विकार्य है ।
यहां तक तो ठीक था । पर आगे चल के रेल एक सेवा के बदले सी.बी.आई – ऍफ.बी.आई बन गई । रेल के कर्मचारी जनता के सेवक नही रहे, सी.बी.आई – ऍफ.बी.आई के एजन्ट बन गए ।
अब तो बात बात पर फोटो के साथ आई.डी प्रूफ भी मांगा जाता है । जनता का बात बात पर अपना आई.डी प्रूफ बताते रहना गुलामी मानसिकता है । यदी कोइ नागरिक में गुलामी मनसिकता ना हो तो भी आई.डी बताने के लिए मजबूर है । रेल का कर्मचारी डिब्बे में आता है, देखता है, टिकट है या नही । यहां तक तो ठीक है, वो रेल के सेवक के नाते जनता का भी सेवक बना रहता है, और वो अपना फरज निभाता है । बाद में वो सी.बी.आई बन जाता है । ये टिकटवाला कहीं आतंकवादी तो नही,— आतंकवादी तो नही लगता ,—–खैर, ये सरकार का गुलाम है या नही वो चेक करना पडेगा । ईस के लिए वो आई.डी प्रूफ मांगता है । टिकटवाला गुलाम निकलता है तो सबकुछ ठीक है वरना भले टिकट के लिए पैसे दिये हो, दो महिना पहले ऍडवान्स में ली हुई टिकट बेकार हो जाती है ।
कारण में बताते है की लोग टिकट का नाजायज उपयोग करते हैं । एक के बदले दुसरा चला जाता है । आज का दौर अनिच्चितता है और वो सरकार की ही देन है । सब को अनिच्चितता के हॅंगर में लटका दिया है । ऍडवान्स टिकट आदमी आनेवाले दिनों के प्रोग्राम से के हिसाब से खरिदता है । अनिच्चितता के कारण प्रोग्राम भी बदलते रहते हैं । एक भाई के बदले दुसरे भाई को, मां के बदले बाप को, बहन के बदले भाई को और पति के बदले पत्नि को जाना पडता है । ऐसे में यदी एक दुसरे की टिक्ट उपयोग की जाती है जायज नाजायज का सवाल ही नही उठता । ये सिधी व्यवहारिक बात है । व्यवहारिक बातों को नही मानना ही सरकार की पोलिसी है ।
कहा जाता है की टिकट के कालाबाजारी को थामने के लिए ये सब कदम है । ये भाई, दुखता है पेट में और तू सिधा माथे में ईन्जेक्शन मार रहा है । ऐसा कहने पर तो अपनी ही मक्कारी, निकम्मापन, दोगलापन जनता के सामने रख देता है । दस कालाबाजारी चोर साहब के लिये लाख आदमी को परेशान करते हो । दस चोर साहब को पकडना आसान है लेकिन आप की नियत ही खोटी है । रेल की बात छोडो, हर क्षेत्र के चोर को आप पकडना नही चाह्ते, पकड लिया तो सजा देना नही चाहते, सजा दी भी तो वो जलदी छुटनेवाली ।
चोर साहब कभी जनता के हाथ लग जाता है तो अपने तरिके से सजा दे देती है, चोर साहब मर भी जाता है । आप को एतराज हो जाता है, पंचनामा करते हैं, किसने मारा वो ढुंढते हैं । आप को चोर मर गया वो फिकर नही है । आप की फिकर है, “ऐसा कौन सा मायका लाल है जो सारकार का गुलाम नही है और सरकार के कानून अपने हाथ में लेता है और तालिबान बन जाता है“
जीन हाथों मे कानून है वो उस का उपयोग ना करे तो जनता क्या करे ? और तालीबानी सोच ऐसे ही नही आई है । उन के देश के राजा और चोर कितने मक्कार रहे होन्गे की सजा देनेका तरिका जनताने अपने आप ढुंढ लिया और वो सजा के तौर पर जेल में बैठाकर बिरियानी नही खिलाते, कोडे मारते है या फीर मार ही देते हैं ।
माफ करना मेरी रेल गलत पटरी पर चली गई, वापस आते हैं ।
रेल की ही बात नही है सब क्षेत्र में यही हाल है । चोरों से बचने के लिये आई.डी का उपयोग जरूरी है । चोर अब साहब बन गये हैं । सरकार चोर साहब से डरती है ऐसा दिखावा करते जनता को डरा रही है ।
अब समय दूर नही ये चोरों से डरी सरकार प्रजा को डरा के, धमका के एकदम गुलाम बना दे और अनिच्चितता के हॅंगर में लटका कर ,सब के कपाल पर आई.डी का टेटू लिखवा कर अपनी दुकान में लगा दे । ये जान ने के लिए की कौन कहां लटका है, उस सामान का मोल क्या है, कितने में खरिदा-बेचा जा सकता है ।

KapalTetoo

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