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हुल्दो हुल्दो !! लिह लिह !!

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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मैं जब छोटा था, ७-८ साल का तब एक गांव गया था । एक बार चबूतरे पर ईकठ्ठे हुए बडे लडकों के साथ जा बैठा । वो सब ठहाके लगा रहे थे । बाद में पता चला की वो सब घुडसवारी के शौकिन थे और गांव में एक ही घोडी थी, बुढे ब्राह्मण किसान के पास । पर वो किसी को अपनी घोडी को हाथ नही लगाने देते । लडके कभी अपनी भैंस पर सवारी कर लेते, मौका मिले तो । लेकिन डांट पडने का खतरा बना करता था । ज्यादातर तो वो गधों पर सवारी करते थे । जब गधों के मालिक कुंम्हारो को मालुम पडा बच्चे उनके गधों को परेशान करते हैं तो गधों को अपने घरमें ही बांधे रखना मुनासिब समजा । गधे मिलना मुश्किल बन गया । नदी के खाली पट में बन्जारे का पडाव हुआ । गांव में टुटे फुटे बर्तनों को सांधने का उन का धंधा था । उन के पास एक गधा और डाघिया (बडा भयानक) कुत्ता था ।

वो लडके पांच पांच पैसे ईकठ्ठा कर के बारह आना ले के उस बन्जारे के कबिले पर पहुंच गये । बारह आने में गधे को भाडे पे मांगा । मना करने पर बहस हुई तो बंजारे ने डाघिये कुत्ते की तरफ देखा और हुल्दो !! हुल्दो !! बोला । डाघिया और वो लडके बन्जारे का ईशारा समज गये । लडके आगे और डाघिया पिछे । कोई ईधर गया कोइ उधर गया । कोइ पानी की तरफ भागा कोइ खेतों की तरफ । डाघियाने किसी को काटा नही, वापस चला गया । और लडके भी एक के बाद एक चबूतरे पर आ गये । जहां वो ठहाका लगा रहे थे । एक दुसरे की तारिफ कर रहे थे तू कैसे भागा – तू कैसे भागा—।

दुश्मनी निकालने के लिए गुजरात के कुत्ते को हुल्दो !! हुल्दो !! बोल कर हुलदाना पडता है काशी के कुत्ते को लिह ! लिह ! बोल कर लिहलिहाना पडता है ।

दिल्ली के कुत्ते के बारे में मालुम नही । पर अब दिल्ली मे आदमीयों को हुल्दाया जाता है । “ हुल्दो !! हुल्दो !! टूट पडो दुश्मनो पर “ ।

ईतवार को केजरीवाल ने हुल्दाया था । आज कोंग्रेस और भाजप ने हुल्दाया है । भाग के तो रोड पे आना है । कोइ बोलता है भागो, कोइ बोलता है काटो । कौन काटने भागता है, कौन बचने भागता है, किसी को पता नही । डाघिये ही डाघिये के बीच, ना हम ठहाका लगा सकते हैं, ना भाग सकते हैं । गले में अटकी गालीयों को थुक के साथ निगल ही सकते हैं ।

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