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ताश के बावन पत्ते

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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ताश के बावन पत्ते, पंजे छक्के सत्ते

सब के सब हरजाई, मैं लूट गया राम दुहाई ।

मैं लूट गया राम दुहाई ।

कभी सुप्रसिध्ध गायक कलाकार स्व. मुकेशने ये गीत एक फिलम मे गाया था । हमारे एक युवा ब्लोगर अजयने ईस लेख को लिखने के लिए प्रेरित कर दिया ।

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ईस ताश की खोज ९ वीं सदी में चीन में हुई थी । तांग वंश के राजा यिजोंग की बेटी राजकुमारी तोंगचांग समय काटने के लिए पेडों के पत्तों से खेलती थी ।

समय के साथ जब कागज का विकास हुआ तो ये खेल के पत्ते कागज के हो गए ।

ईस पत्तों के साथ कभी ईज्जत जुडी हुई नही थी । टाईम पास ही था । समय के साथ खेल बदल गया और पैसे के खेल भी आ गये । जुआ जो ताश से भी सदियों पूराना है वो ताश के पत्तों में घुस गया, और ताश के पत्ते को बदनाम कर दिया । आज हालत ये है की घर में रख्खो तो ईज्जत मैके चली जाती है । और पोलीस को भी जुठा केस दर्ज करने का मौका मिल जाता है “ देखो, ईस के घर से ताश के पत्ते मिले है और पांच हजार कॅश भी “ । भाई, ५००० तो आधे महिने का खर्च है सब के घर मे होता है ।

ताश तो हम भी बहुत खेले हैं लेकिन बिना पैसे के खेल ।

मानव जीवन भी ताश के पत्ते समान है । साहस भी पत्ता ही है । आदमी धंधे की शरुआत करता है तो साहस  का पत्ता ही चलता है । चल गया तो बाजी मार लेता है, नही चला तो हार मिलती है । हर आदमी ताश के महल बनाता है । महल ढह जाता है, फीर बनाता है । बनाते बनाते आदमी खूद ढह कर कबर मे सो जाता है या स्मशान में जल जाता है ।

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लडकियो के लिए माबाप सपनो के राज कुमार नाम का पत्ता चला देते है । सोचते हैं लडकी सुखी होगी । लेकिन लडकी जब अपना पत्ता फैंकती है तो ये सपनो का राजकुमार, मजबूत हो तो टीक पाता है वरना जोरु का गुलाम हो जाता है, वो गुलामवाला पत्ता ही बन जाता है ।

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लडके के लिए माबाप बहु लाते हैं सिधी सादी रानी समज कर । लेकिन घर आते ही हुकुम की रानी बन जाती है । लडका अगर गुलाम बनता है तो खेल सरलता से चलता जाता है, बादशाह ही बना रहा तो सारी जिन्दगी तू तू मैं मैं मे गुजर जाती है ।

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देश की जनता हर ५ साल बाद वोट का जुआ खेलती है । सोचती है हम बादशाह उतार रहे हैं, अब की बार तो बाजी जीतना ही है । और क्यों ना ऐसा सोचे ? नागरिक की ईच्छा होती है की अपना राजा बहादूर और देश भक्त हो । लोकशाही में तो नागरिक की ये हसरत पूरी हो सकती है । लेकिन हुकुम पाडने की प्रक्रिया ईतनी जटिल बना दी गई है की रानीवाला पत्ता ही हुकुम का पत्ता बन जाता है । बाकी सब पत्ते भीगी बिल्ली बन जाते हैं । नागरिक हार जाते हैं । बार बार मिलती हार से गरीब और कमजोर हो जाता है । बोलने की भी ताकत नही बचती, बोलता है तो भी बिल्ली की तरह म्याउं से आगे कुछ नही कर सकते ।

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ऐसा नही है की ईस हुकुम की रानी के उपर हुकुम का ईक्का या जोकर नही है । है लेकिन विदेश में है ।

ऐसे ही एक जोकर ने अपने ही देश के दो टावर पत्ते के महल की तरह ढहा दिए । उसे बडी बाजी मारनी थी । कुछ मुस्लिम देश जीतने थे । वहां अपने पत्ते बैठाने थे ।

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ये पत्ता तो बडा खतरनाक पत्ता है । आदमी को तो खेलना नही होता है सिर्फ देखना ही होता है तो भी सारा काम बाजु में रख कर बैठ जाता है देखने । कभी बूकी से बूकिन्ग कर लिया तो घर जा के डांट भी खानी पडती है । ये पत्ता ईस लिए छोडा जाता है जीस से जनता का दिमाग ठंडा रहे, खास बात से ध्यान हटे, और मजा करते करते सो जाए ।

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ये तो बहुमंजिला पत्ता है । सरकार ताक में रहती है की जनता के पास कब पैसे आये या हमने कब पगार बढाये । हालां की वो महंगाई या दस तरिके के दुसरे पत्ते चला कर जनता को तो हराती ही रहती है फिर भी अगर उसे लगता है कुछ पैसा जनता के पास है तो बहुमंजिला पत्ता चला देती है । ये पत्ता जनता का सामुहिक मुंडन करने की क्षमता रखता है ।

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मुंबई स्टोक मारकेट

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