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वन्देमातरम बंकिमबाबू !

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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वन्देमातरम बंकिमबाबू !

bankim

वन्देमातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलां
शस्यश्यामलां मातरम्
शुभ्रज्योत्सनापुलकितयामिनी
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम्।
वन्देमातरम्

त्रिंशत्कोटि-कंठ-कलकल-निनाद-कराले
द्वित्रिंशत्कोटिभुजैर्धृत-खर-करवाले
के बोले मा तुमि अबले?
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम्!
वन्देमातरम्

तुमि विद्या, तुमि धर्म,
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति
तोमारई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे
वन्देमातरम्

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलां
सुजलां सुफलां मातरम्!
वन्देमातरम्

श्यामलां, सरलां, सुस्मितां, भूषितां,
धरणीं, भरणीं मातरम्!
वन्देमातरम्

————ईस गीत की समज भारत के सपूत, एक ब्लोगरभाई ने हिन्दी में दी है ।———–

http://balsanskar.com/hindi/lekh/299.html

हे माते, मैं तुम्हें वंदन करता हूं ।

जलसमृध्ध तथा धनधान्यसमृध्ध द्क्षिणके मलय पर्वतके उपरसे आनेवाली

वायुलहरोंसे शीतल होनेवाली तथा विपूल खेतीके कारण श्यामलावर्ण बनी हुई, हे माता

चमकती चांदनियोंके कारण यहां पर रातें उत्साहभरी होती हैं,

फुलोंसे भरे हुए पौधोंके कारण ये भूमि वस्त्र परिधान किए समान शोभनिय प्रतित होती है ।

हे माता, आप निरंतर प्रसन्न रहनेवाली तथा मधुर बोलनेवाली, वरदायनी, सुखप्रदायनी हैं !

तीस करोड(अब १२०) मुखोंसे निकल रही भयानक गर्जनाएं तथा साठ (२४०) करोड हाथोंमें चमकदार तलवारें होते हुए,

हे माते, आपको अबला कहनेका धारिष्ट्य कौन करेगा ?

वास्तवमें माते, आपमें सामस्थ्य हैं । शत्रुसैन्योंके आक्र्मणोंको मुह-तोड जवाब देकर

हम संतानोंका रक्षण करनेवाली हे माता, मैं आपको प्रणाम करता हुं ।

आप से ही हमारा ज्ञान, चरित्र तथा धर्म है । आप ही हमारा ह्रदय तथा चैतन्य हैं ।

हमारे प्राणोंमें भी आपही हैं । हमारी कलाईयोंमें शक्ति तथा अंतःकरणमें काली माता भी आपही हैं ।

मंदिरोंमें हम जिन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठापना करते हैं, वे सभी आपके रूप हैं ।

अपने दस हाथोंमें दस शस्त्र धारण करनेवाली शत्रुसंहारिणी दुर्गा भी आप तथा

कमलपुष्पोंसे भरे सरोवरमें विहार करनेवाली कमलकोमल लक्ष्मी भी आपही हैं ।

विद्यादायिनी सरस्वती भी आप ही हैं । आप को हमारा प्रणाम हैं । माते, मैं आपको वंदन करता हूं ।

ऐश्वर्यदायिनी, पुण्यप्रद तथा पावन, पवित्र जलप्रवाहोंसे तथा अमृतमय फलोंसे समृध माता

आपकी महानता अतुलनिय है । उसे कोई सीमा ही नहीं है । हे माते, हे जननी हमारा तुम्हें प्रणाम है ।

माते, आपका वर्ण श्यामल है । आपका चरित्र पावन है । आपका मुख सुंदर हंसीसे विलसीत है ।

सर्वाभरणभूषित होनेके कारण आप कितनी सुंदर लगती हैं ।

सचमें, हमें धारण करनेवाली तथा हमें संभालनेवाली भी आप ही हैं ।

हे माते, हमारा आपके चरणोंमें पुनःश्च प्रणिपात ।

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नमस्कार और वंदेमातरम, बंकिमबाबू !

आप करोडों भारतवासी के प्रेरणादायक हो । स्वातंत्र्य संग्रामी आप के “बंदेमातरम” के नारे से नया जोश, नई उर्जा पाते थे ।

सर, आप के जरिए ही मुझे पता चला की भारतका पहला स्वातंत्र्य संग्राम १८५७ नही पर १७७२ में हुआ था, संन्यासियों ने अंग्रेजों के विरुध्ध लडाई छेड दी थी, जो बीस साल तक चली थी ।

ईस बातको ईतिहासमें तो कभी नही पढा । आम जनता के लिए आपका “आनंदमठ” ही उपलब्ध है जो ईस संग्राम पर आधारित है । लेकिन उपन्यास पढने का रिवाज कहां है भारत में ?

अंग्रेज और साधुओंकी लडाई ऐतिहासिक ही थी काल्पनिक नही । आपने ग्लॅस की किताब “वॉरेन हेस्टिंग के जीवन संस्मरण” और विलियम हंटर की किताब “एनल्स ओफ रूरल बंगाल” को आधार बनाया है । वोरेन हेस्टिन्ग तो उस समयका अंग्रेज प्रशासक था । और अपने १०८ साल की उमर के  दादाजी की यादों को कुरेद कुरेद कर उस समय की बातें जान ली थी । दादाजी को जुठ बोलने का कारण नही होता । दादाजी ने ही बताया अकाल के कारण खेतीबाडी खराब हो गई थी, किसी के पास अनाज का दाना नही बचा था । लोग डकैत बन गये थे ।

साधुओं के पास तो सिर्फ चिमटा और त्रिशुल होता था । अपनी सेनामें जोश भरने के लिए एक नारा गाते थे “ओम वन्देमारतरम” । उस नारे को आपने विस्तृत रूप दिया, कविता बना दिया और “आनंदमठ” में उस का उपयोग किया ।

वन्देमातरम के बारेमें योगी अरविन्दने लिखा था “ बत्तिस वर्ष पूर्व बंकिम ने अपना ये महान गीत लिखा था और कुछ ही लोग ने उसे सुना किन्तु लम्बी मोहनिद्रा में आकस्मिक जागरण के क्षण में बंगाल के लोगोंने सत्य के लिये ईधर उधर देखा और सौभाग्य से कोइ “वन्देमातरम” गा उठा । और एक दिन समुचा राष्ट्र देशभक्ति धर्म का अनुयायी बन गया ।“

सर, आपने भी भविष्यवाणी की थी “ एक दिन ऐसा आयेगा की बंगभूमि इस गीत को सुनकर नाचने लगीगी । बन्गभूमि ही नहीं सर, पूरा भारत नाचने लगा था । अब तक नाचता रहा है । अब साजिश हो रही है ये नाच बंद किया जाये । “देशभक्ति” और “वसुधैव कुटुम्बकम” के बीच स्पर्धा है । देशभक्ति हार रही है । देशभक्ति की बात करना पिछडापन है अब विश्वभक्ति करनी है । आनेवाली विश्वसरकार के मुकुट को चरण स्पर्श करती हुई “जनगण मन अधिनायक” जैसी कविताएं गाई जायेगी । वन्देमातरम गाना अब खतरनाक है । विश्व सरकार के लिए बाधारूप है । भारत जैसी क्षेत्रिय भावना जगाता है । वन्देमातरम अबतक चला क्यों की देश द्रोहीयों को ईस के असर का अंदाजा नही था । जब रहेमान नाम के संगीतकारने ईसे संगीतमें ढाला तब कान खडे हो गये थे । लेकिन एक्शन नही लिया । जब अन्नाने ये नारा उठाया तो देश द्रोही दहल गये ।  ऐसी कुटिलनीति चलाई मुस्लीम प्रजा को उकसाया । ये गीत आपके धर्म के विरूध्ध है । मुस्लिमो को और क्या चाहिए, देश जाये भाडमें, धर्म पहला । पिछले ११२ सालसे ये गीत गाया जाता रहा है और रहेमानने जब ईसे गाया तो पूरा देश भाव विभोर हो के जुम उठा था । उस समय धर्म बीचमें नही आया था ।

दोस्तो

मेरी उपर कही बातों का आधार आप को मेरे आनेवाले लेख द्वारा मिल जायेगा । अभी तो ये दो गीत आपको सुनाता हुं । ये गीत जो ईतिहास बननेवाले हैं । क्यों की दोनों गीत राष्ट्रिय गीत है ।

Mile Sur Mera Tumhara [HighQuality]

R. Rahman – Maa Tujhe Salaam

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पहले भी वन्देमातरम पर पाबंदी लगाई गई थी ।

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भारतीयोंको प्रेरित करनेवाले ‘वंदे मातरम्’पर बंदी लानेवाला ब्रिटिश शासन

‘वंदे मातरम्’ ये शब्द केवल बंगाली लोगोंके होंठोंपर ही नहीं, अपितु चूडियोंकी कलाकृतिमें (नक्काशीमें), कुर्ते और साडियोंके छोरोंपर (किनारोंपर) तथा दियासलाईके वेष्टनोंपर (कवरपर) भी दिखाई देने लगे । यह गीत राष्ट्रीय गीतके रूपमें सर्वत्र गाया जाने लगा । उसकी बढती लोकप्रियताके कारण वर्ष १९०८ के आसपास ब्रिटिशने इस गीतके गायनपर बंदी लगा दी । विशेष बात तो यह थी कि ब्रिटिश और फ्रांसीसी ग्रामोफोनके आस्थापनोंने (कंपनियोंने) ही एवं उनके दलालोंने इस गीतका महत्त्व तथा लोकप्रियताको पहचानकर ग्रामोफोन ध्वनिमुद्रिकाएं (रेकॉर्ड्स्) बनाना आरंभ किया । आरक्षकोंने (पुलिसने) धावा बोलकर इन प्रतिष्ठानोंकी अधिकांश सामग्री नष्ट की । दुर्भाग्यसे रविंद्रनाथजीकी ध्वनिमुद्रिकाओंको छोडकर इस आरंभिक कालमें किया गया अन्य सर्व ध्वनिमुद्रण नष्ट हुआ है ।

http://hindujagruti.org/hn/h/23.html

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बंकिमबाबू के लिए और जानकारी

http://abhivyakti-hindi.org/amar_kahani/bankimchandra.htm

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