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गिध्धों से घिरा आसमान

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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पाकिस्तान के पंजाब और सिन्ध के गावों मे एक भयानक रिवाज अभी तक मौजुद है । इन गांवों मे जब किसी का गधा या घोडा बुढा हो जाता है, बिमार हो जाता है या किसी और शारीरिक कारण से काम के काबिल नही रह जाता तो उस का मालिक उसे गांव से थोडे दूर रहे अहाते में छोड देता है । ये अहाता गधों का आखरी आरामगाह समजा जाता है । इस अहातों की दिवार और पेडों पर ची्ल और गिध्ध बैठे होते हैं । ये गिध्ध गधे का घेराव कर लेते हैं, उस की पीठ पर बैठ जाते हैं, अपनी चोंच से उस की पीठ में सुराख करते हैं । और जिंदा गधे की बोटियां नोच नोच के खाने लगते हैं ।

एक प्रवासीने ईस मंजर का वर्णन किया है, अपनी प्रवास कथा में । आदमी के रोंगटे खडा करने के लिए काफी है । लिखा है उस के सामने एक जख्मी गधा खडा था । गधे की पिठ पर गीध बैठा था । गिध्ध की गरदन गधे की पिठ के सुराख में गुम थी । पिठ पर सिर्फ गीध के पर और पांव रह गये थे । गधा तकलिफ से चीख रहा था लेकिन गीध उसे अंदर से काट काट कर खा रहा था । म्रेरे देखते ही गिधने अपनी चोंच सुराख से बाहर निकाली तो गरदन तक गधे के खूनमें लुथरा हुआ था ।

दोस्तो, जहां मैं खडा हुं वहां से मुसे भारत को चलानेवाला सिस्टम दिखता है । उस का हर क्षेत्र उस जखमी गधे जैसा ही लगता है । और उसे चलानेवाले उस गिध्ध जैसे लगते है जीनकी चोंच

गरदन तक इस सिस्टम के खून से लुथडी है । इसमें मैं भी शामिल हुं, आप भी शामिल हैं । हम सब इस देश को नोच नोच के खाये जा रहे हैं । और फरियाद भी करते हैं इस देश का सिस्टम ठीक नही । इसमें इन्साफ नही, कायदा कानून का पालन नही, मॅरिट की बात नही, राजनीति ही अच्छी नही और इस की पोलिसियां बराबर नही ।

लेकिन हमने कभी नही सोचा की हमने इस देश के लिए किया क्या है । हमने इस सिस्टम को साफ करने, सुधारने के लिये क्या किया है ? ठिक है हो सकता है ईस देशने हमे कुछ ना दिया हों । लेकिन सवाल ये है की हमने आज तक देश को क्या दिया है ?

मैं दुसरी तरफ से देखता हुं तो भारत की जनता में ही वो जखमी गधा नजर आता है । वो गधा दर्द से चिखता रहता है लेकिन तराह तराह के गिध्ध और चीलें तूट पडती है उस पर उसे नोचने के लीए । भले उस गिध्धों की चोंच दिखाई नही देती है लेकिन बेरोजगारी-भुखमरी वाली चोंच आदमी को आखरी आरामगाह वाले अहाते में भेज देती है मरने के लिए । मेहंगाई और टेक्स की चोंच इस की पिठ की अंदर तक उतर जाती है, जो भी खून बचा है पी के बाहर निकलती है । कुछ चोंच लाठी की तरह बरसती, सिस्टम का पूरा बोजा ही लाद देती है ।

किसान अपनी फसल की रखवाली के लिए खेतों के आसपास बाड लगाते हैं । इस बाडकी जिम्मीदारी फसल की हिफाजत होती है । जब बाड ही फसल को खाने लगे तो हालात उस वक्त खराब हो जाते हैं । इसी तरह चौकीदार जब चोर बन जाता है , महंत मंदिरो की सिमेंट, ईंट और सरिया बेच देता है, पोलिस डाकु बन जाती है , जज बेइन्साफी करते हैं, फौज अपने ही शहरियों को फतह करते हैं, कानून के रखवाले कनून तोडने लगते हैं, नेता राजनीति को कारोबार बना लेते हैं और जनता देश को लूटते, बारबाद होते, खराब होते देखती रहती है, तो समस्या ही  पैदा होती है । और हमारे देश के साथ यही हो रहा है । इस देश को उस की बाड खा रही है, उस के चौकीदार चोर बन चुके हैं, और देश का मालिक याने जनता मुह देख रही है, उसका अंदर का जखम गेहराता जा रहा है ।

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