Menu
blogid : 5733 postid : 1028

जागा हुआ जठराज्ञी

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
  • 42 Posts
  • 227 Comments

French_Revolution

भुखे जनो का जठराज्ञी जगेगा तो किले की भस्म-कणी भी नही मिलेगी । ये बात ८० साल पहले एक कविने कही थी ।

आज जनता का जठराज्ञी जाग गया है । भूख के प्रकार अनेक हैं । खाने की भूक, पहनने की, रहने के मकान की, न्याय की भूक । न्याय की भूख ने आज दिल्ली को दहलाया है । दिल्ली का किला अगर भस्म होता है तो एक भस्म-कणी भी मिलेगी नही ।

आदमी इतिहास से सिखता नही है । १७८९ में क्या हुआ था फ्रान्स में और भारत के आज के हालात फ्रान्स के उस समय के हालात से कैसे जुदा है ?

1789 में फ्रन्स में किन्ग लुई १६ का राज था । उस के दौर में फ्रन्स दो तबकों में विभाजित हो गया था । एक वो तबका जिस के लिए फ्रान्स स्वर्ग का टुकडा था । वो लोग चांदी की प्लेटों में सोने के चम्मच से खाना खाते थे । बडे घरों में रहते थे । उन लोगों को आम लोगों पर टेक्स तक लगाने की इजाजत थी और उन लोगों को कानूनन दस कत्ल माफ थे ।

जब की दूसरा तबका जिन्दगी की जरूरियात के लिए तरस रहा था । इन लोगों के पास खाने के लिए खाना, पिने के लिए साफ पानी, पहनने के लिए कपडे, और सर छुपाने के लिए छत तक नही थी । ये लोग बेरोजगार भी थे, धनी लोगों के जुर्म का शिकार भी थे, इन्साफ से महरूम भी थे, और उसे शिक्षण या स्वास्थ्य के लिए बराबरी के हक्क भी हासिल नही थे ।

जनता की सहन शिलता की हद आ गई जब अकाल के कारण खेती फेल हो गई । लोग शाही महल के सामने इकठ्ठे हुए । और राजा के सामने “रोटी रोटी रोटी की दुहाई देने लगे” । राजा की नौजवान रानी ने कहा था “अगर इन लोगों को रोटी नही मिलती तो केक खा ले “ । लोग रोते रहे और धनी तबका उनकी मजबूरियों पर हंसता रहा ।

उस समय फ्रन्समें रिश्वत को कानूनी शक्ल हासिल हो चुकी थी और पेरिसमें रिश्वत के बगैर मुर्दे तक का दफन मुमकिन नही था । सारा सरकारी तंत्र ढह चुका था और लोगों को सांस लेना भी मुश्किल हो गया था । उन हालात में १४ जुलाई, १७८९ को लोगों का एक छोटासा ग्रूप उठा । हाथमें डंडे और हथियार उठाये, और पेरिस की और चल पडे । राज्यने शुरु शुरु में उसे बागी समज लिया और फौज को उसे कुचलने के लिए भेज दिया । लेकिन फौज के पहुंचने से पहले ही ये छोटासा ग्रूप हजारों लाखों की फौज बन चुका था । लोगों की ये फौज एक महिनेमें पेरिस पहुंच गई । घर घर की तलाशी ली और पेरिस का हर उस आदमी का गला काट दिया जो रोज शेव करता था, जो दिन में तीन बार खाना खाता था, जिस के घरमें रात के वक्त रोशनी होती थी और जीस के पास एक जोडी से ज्यादा कपडा होता था । इतिहास इस खून के खेल को फ्रान्स का रिवोल्युशन कहता है । आजादी की लडाई कहता है ।

ये लडाई १७९३ तक चली और इस के बाद फ्रन्स से राजाशाही सदा के लिए खतम हो गई । इस दौरान गरिबों की फौजने धनी तबके के तमाम लोगों को, तमाम मंत्रीयों, जमीनदारों, सरमायदारों, तमाम खूशहाल लोगों को कत्ल कर दिया । राजा के महल पर हमला किया, राजा को बंदी बनाया । कैद से छुटकर ऑस्ट्रिया भागते समय राज परिवार पकडा गया । नई व्यवस्थाने राजा को मौत की सजा सुनाई । हजारों लोगों के सामने शूली पर चडा दिया । रानी मेरी एन्टोनिएट विदेशी थी तो प्रजा को विशेष नफरत थी । प्रजा मानती थी की सारे फसाद की जड ये रानी ही है । उस जवान रानी को छ बाय छ के छोटेसे पिंजरेमें बंद कर दिया । रानी को ये सजा इतनी कठोर लगी की एक डेढ महिनेमें उस के बाल सफेद हो गये ।
http://eyewitnesstohistory.com/louis.htm

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply