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गाय की राजनीति

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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गाय और गंगा वैदिक काल से वैदिक संस्कृती के साथ जुडे हुए हैं । सनातन धर्म में दोनो को पवित्र स्थान मिला हुआ है और दोनों को माता कहा गया है ।

अर्थ तंत्र प्रारंभिक अवस्थामें था, खेती और पशुपालन ही प्रमुख व्यवसाय थे । खेती में नदियों का उपकार था तो नदियां पवित्र मानी गई, पशुपालन का संबंध दूध के उत्पादन से था, दूध के लिए गाय का उपयोग हुआ तो गाय को पवित्र माना गया । गाय का आयुर्वेद में भी बडा स्थान है । ये बात सारे भारतवासी जानते है ।

गाय को करंसी के रूप में भी उपयोग होता रहा था । जीस के पास कम गाय होती थी वो आदमी गरीब था जीस के पास ज्यादा होती थी वो धनवान होता था । जीस के पास गाय ही नही वो तो भिखमंगा माना जाता था ।

महाभारत में कहा गया है गुरु द्रोण के पास गाय नही थी तो गुरु पत्नि अपने बच्चे को आटामें पानी मिलाकर नकली दूध बना कर पिलाती है । ये गुरु से देखा नही गया और वो अपने मित्र पांचाल नरेश के पास गाय का दान लेने पहुंच जाते है लेकिन वो असफल वापस आते है । एक राजा को गाय का दान देना कोइ बडी बात नही होती है लेकिन और कोइ कारण होगा । गाय को पोलिटिक्स के साथ जोडने का शायद वो पहला प्रसंग होगा ।

मध्ययुग में क्षत्रिय राजा या राजकुमारों को उकसाने के लिए गाय का उपयोग किया जाता था । दुश्मन राज्य के सैनिक गौचर से गायों के समुह को कबजा कर लेते थे । समाचार मिलते ही राजा या राजकुमार न आव देखता था ना ताव घोडे पर सवार हो कर निकल पडता था गाय को छुडाने और दुश्मन के जाल में फंस जाता था ।

अंग्रेजों ने भी गाय का राजकिय उपयोग किया । हिन्दु सैनिकों की आस्था तोडने के लिए १८५७ में बंदूक की कारतूस का उपयोग किया । कारतूस का सील मुह से तोडा जाता था । उस सील में गाय और डुक्कर की चरबी मिलाई जाती थी । हिन्दु और मुस्लिम सैनिकों को ये जताना था की अब आप धर्मभ्रष्ट हो चुके हो । मंगल पांडे की बगावत इस कारण से ही थी ।

गांधीवादियो के परम पूज्य गांधीजीने भी गाय के साथ खेलने का खेल नही छोडा । वो कहा करते थे कि गौरक्षा करने से मोक्ष मिलता हैं । सन 1921 में गोपाष्टमी के अवसर पर पटौदी हाउस में एक सभा के अन्दर , जिसमें हकीम अजमल खान , डॉ. अन्सारी , लाला लाजपतराय , पं. मदन मोहन मालवीय आदि उपस्थित थे , तभी इन सभी लोगों के समक्ष एक प्रस्ताव पास कराया गया कि ” गौहत्या को अंग्रेजी सरकार कानूनी दृष्टि से बन्द करे , नहीँ तो देशव्यापी असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया जायेगा । ”

इसके बाद कांग्रेस के कार्यक्रमों में ‘ गौरक्षा ‘ सम्मेलनों का आयोजन होने लगा । परन्तु गांधी जी ने यह पाखण्ड केवल हिन्दुओं को अपना अनुयायी बनाने के लिए किया था ।

15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने पर देश के कोने – कोने से लाखों पत्र और तार प्रायः सभी जागरूक व्यक्तियों तथा सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा भारतीय संविधान परिषद के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के माध्यम से गांधी जी को भेजे गये जिसमें उन्होंने मांग की थी कि अब देश स्वतन्त्र हो गया हैं अतः गौहत्या को बन्द करा दो । तब गांधी जी ने कहा कि ” राजेन्द्र बाबू ने मुझको बताया कि उनके यहाँ करीब 50 हजार पोस्ट कार्ड , 25 – 30 हजार पत्र और कई हजार तार आ गये हैं । हिन्दुस्तान में गौ – हत्या रोकने का कोई कानून बन ही नहीं सकता । इसका मतलब तो जो हिन्दू नहीं हैं , उनके साथ जबरदस्ती करना होगा ।

जो आदमी अपने आप गौकुशी नहीं रोकना चाहते , उनके साथ मैं कैसे जबरदस्ती करूँ कि वह ऐसा करें । इसलिए मैं तो यह कहूँगा कि तार और पत्र भेजने का सिलसिला बन्द होना चाहिये इतना पैसा इन पर फैंक देना मुनासिब नहीं हैं । मैं तो अपनी मार्फत सारे हिन्दुस्तान को यह सुनाना चाहता हूँ कि वे सब तार और पत्र भेजना बन्द कर दें । भारतीय यूनियन कांग्रेस में मुसलमान , ईसाई आदि सभी लोग रहते हैं । अतः मैं तो यही सलाह दूँगा कि विधान – परिषद् पर इसके लिये जोर न डाला जाये । ” ( पुस्तक – ‘ धर्मपालन ‘ भाग – दो , प्रकाशक – सस्ता साहित्य मंडल , नई दिल्ली , पृष्ठ – 135 )

गौहत्या पर कानूनी प्रतिबन्ध को अनुचित बताते हुए इसी आशय के विचार गांधी जी ने प्रार्थना सभा में दिये ।

गांधी के बाद भी गाय का राजकिय उपयोग चालु रहा । गाय का वध एक बहुत बडा शस्त्र है हिन्दु और मुस्लिमो के बीच दूरी बनाये रखने के लिए । समजदार मुस्लिमों ने गाय का वध रोकने के लिए कोइ कानून बनता हो तो पूरा सहकार देने का वायदा किया था लेकिन अंग्रेज की गुलाम सरकार ने ही कानून नही बनाये । गाय को खाने के मौलिक अधिकार बताये गये । भारत में बहुत से ऐसे प्राणी है, जीन को खाने के मौलिक अधिकार हो सकते हैं । हिरन, मोर, रोज (निलगाय) बहुत से हैं उसे रक्षित कर दिया है । क्यों, क्या कारण है । अगर गौवध के कानून से मांस आपूर्ति में कमी होती है तो हिरन ही वो कमी दूर कर सकता था । लेकिन नही, हिरन के साथ कोइ धर्म नही जुडा है । हिरन को खाने की छुट देते हैं तो गाय की डिमांड कम हो जायेगी ।

इल्ल्युमिनिटी प्रेरित पर्यावरण वादियों और गुलाम सरकार ने जनता को भ्रम में ही रखने के लिए पटोडीयों से ले कर सलमान खानों तक की कथित सेलिब्रिटियों का उपयोग किया, उनके केस लटका दिये और साबित कर दिया की गाय से भी पवित्र हिरन है । इन लोगों ने अगर गाय को मार कर खाई होती तो केस बनता ? जनता ही मुर्ख है तो किसे दोष दें ?

गाय को अब वही सरकार बचा सकती है जो पूरी तरह राष्ट्रवादी सरकार हो, इल्ल्युमिनिटी की गुलाम ना हो । जो सच्चे मनसे हिन्दु और मुस्लिमों के बीच दूरिया कम करना चाहती हो ।

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