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गौ-सेवक

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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भाईयों के साथ मिटिंगमें बैठा था, तो अश्विन के फोन की रिन्ग बजी, “शिहोर से फोन है” इतना बोल कर उठ के अपने घर की और चलता बना । मैंने उस के पिता याने मेरे चचेरे भाई की और देखा तो उन्होंने बताया की “कोइ गाय बिमार है, ये दो चार लडके यहां से मेडिकल कीट ले के जायेंगे, थोडी बिमारी होगी तो वहां इलाज कर के आ जायेंगे वरना गाय को ही उठाके यहां ले आयेन्गे । अब इस का आने का कोइ भरोसा नही, २ भी बज सकता है, सुबह भी हो सकती है । “

रात के दस बजे थे, शिहोर भी १८-२० कोलोमिटर दूर है, इस का समर्पण देख कर मुझे लगा की मैं इस लडके के साथ जाउं, देखुं की वो लोग ये सब कैसे कर रहे हैं । अभी सोच ही रहा था की हमारे सामने से ही अपनी बाईक ले के निकल गया । शायद मेरी इच्छा ही अधूरी थी इसलिये फोन कर के वापस नही बुलाया मुजे साथ ले जाने के लिए ।
वैसे गुजरात में सरकारी पशु के डोक्टर होते हैं, किसान उन्हीं डोक्टरों की सेवा लेते हैं । लेकिन अगर बिमारी ला-इलाज हो जाती है तो किसान ऐसी बिमार गाय या बैल से छुटकारा पाने के इरादे से हमारे गांव की गौशाला कम पशु अस्पताल को खबर करते हैं । या कीसी रास्ते पर अकस्मात के कारण गाय घायल होती है तो राहदारी फोन से जानकारी दे देते हैं । हां, दायरा ३०-३५ किलोमिटर का ही रख्खा है । इस से ज्यादा दूर के गांवों को कवर करना मुस्किल है । सेवा करने वाले सब नौकरी पेशा या धन्धेवाले होते हैं अपना काम छोडकर जाना होता है ।

पहले एक डोक्टर को रख्खा था लेकिन वो सारा काम गांवके लडकों से ही करवाता था । उस ने ही सिखा दिया, दावाई देना, ओपरेशन करना, सडे हुए सिंग (कमोडी की बिमारी) निकालना, कान पकड के या गौमुत्र सुंघ के गाय की बिमारी समज लेना । लडके माहिर हो गये तो डोक्टर चला गया । ये अश्विन उनमें से एक है ।


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बडे से बडा ओपरेशन भी ये बच्चे लोग कर देते हैं । खास कर कमोडी के ओपरेशन मे इन की मास्टरी है । कमोडी में पशुके सिन्ग मूल में से सड जाता है, खोपडी और मगज को ईजा होने से पहले ओपरेशन कर देना पडता है, वरना पशु मर जाता है ।

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जीस दिन मैं गौशाला देखने गया तो दुर्भाग्य से एक मरी हुई गाय देखी । गांव के ही चर्मकारो को उसे ले जाते देखा । वहां सेवा दे रहे गौसेवक को पूछा कितने परसन्ट गाय मरती है इलाज के दौरान । काम छोटा है, मुश्किल से सालमें १५०-२०० गाय आती होगी कोइ रेकोर्ड नही रखते । आस पास खडे लोगोंने अंदाजे से बता दिया की ७५ से ८० % हम लोग बचा लेते हैं । गाय मरी हुई समज कर ही किसान गाय को हमारे हवाले कर जाते हैं । अच्छी होने के बाद वापस भी नही ले जाते हमे बडी गौशाला में भेज देना पडता है ।
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अशक्त, अपंग, बिमार गायों की गौ-सेवा होस्पिटल । स्थापना ५-१०-२००३ रविवार ( दशहरा )

०९५१०९५११४५, ०९८२४५८७०७०, ०९३२७७७४७२४

नंद गौ सेवा संस्थान

प्राथमिक कन्याशाला के पास

नवा परा, नारी

जिला भावनगर, गुजरात

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गौ-हत्या से बचने के लिये अपना कचरा, जुठन प्लास्टिक की थैली में डाल कर मत फैंका करो ।

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कोइ दान धरम की आस से ये लेख या एड्रेस नही दिया है । दान के लिए हमारे ही गांव के लोग काफी है । इस संस्था का विकास करने का भी कोइ इरादा नही है । रोजमर्रा के काम के बीच ऐसी निःस्वार्थ सेवा हो सकती है ये बताना ही मेरा इरादा था । हमारे गांव के लडके अपना धंधा संभालते हुए ये काम कर सकते हैं तो और गांव के लडके भी कर सकते हैं । कोइ एक राज्यमें ऐसा हो सकता है तो और राज्यमें भी हो सकता है । कोइ एक गांव में संस्था को विकसित करके बडी करने में पगारदार सेवकों की जरूरत पडती है, और ऐसा होने पर सेवाभाव ही खतम हो जाता है ।


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