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मनी गेम

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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कुछ विषय ऐसे हैं जो दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं, पैसे का विषय उन में से एक है । ये मानव जात की भावनाओं से जुड गया है क्यों की मनव के लिए पैसे ही सारी समस्या का उपाय है । और पैसा ही सारी समस्या खडी करता है । समस्या खडी इस लिए होती है की मुद्रास्फीति की दर चढ़ता जाता है । जाहिर है, वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढती है फिर उपभोक्ताओं के लिए इस की किमत बढ जाती है । उपभोक्ता की खरीद शक्ति बढाने के लिए उस की आमदनी बढानी पडती है, मुद्रा छाप कर कॅश मुहैया कराना पडता है । इस लिए मुद्रा आपूर्ति वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति के अनुपात में बड़ा हो जाता है और ऐसा कुचक्र मुद्रास्फीति की दर बढता रहता है ।

मौजुदा करंसी का अपना कोई मुल्य नही है; सिर्फ सेवा या सामान खरीदा जा सकता है । व्यक्ति या राष्ट्र की संपत्ति का आधार उस बात से आंका जाता है की उसने सेवा या किमती सामन कितना उत्पादित किया, कितना वितरित किया और कितना पासमें है, नही की पैसे कितने हैं या कितने प्रिन्ट किये । वास्तव में एक राष्ट्र बिना किसी मुद्रा से लंबे समय तक जीवित रह सकता है अगर सारे उत्पादन सही ढंग से हो रहे हो । सेवा के बदले सेवा, सेवा के बदले सामान, सामान के बदले सामान; ऐसे ही हजारों साल तक राष्ट्र जीवित थे जब करंसी नही खोजी गई थी । वस्तु विनिमय( barter system) का ये सिस्टम १९६० तक भारतमें चलता था करंसी होते हुए भी । उत्पादन और वस्तु विनिमय सभी अर्थव्यवस्था का आधार हैं ।

करंसी का मूल उद्देश्य है वस्तुओं और सेवाओं के आदान प्रदान की सुविधा बढाना ।

सिक्के और कागजी मुद्रा मूल रूप से वस्तु विनिमय की सहायता करने के लिए बनाए गए थे । इस से लोगों को वास्तविक सामान उठाकर जाने की या तुरंत सेवा प्रदान करने की जरूरत नही रही, व्यापार मे आसानी हो गई ।

कागजी मुद्रा की शुरूआत एक “वचनपत्र” (promissory notes) के रूप में हुई थी । वचनपत्र एक ऋण का भुगतान करने के लिए एक लिखित वादा होता है । वचनपत्र लिखनेवाला एक निश्चित मात्रा में सामान प्रदान करने का वादा करता है, कगज की मुदा घारक जब मुद्रा वापस करता है तो वो सामान प्रदान करना पडता है ।

धातु के सिक्के की जगह कागज के नोट का उपयोग १६०० में शुरु हुआ जो हमारी आधुनिक मौद्रिक प्रणाली बन गई । इस नींव रखनेवाले जौहरी थे । जौहरी के पास आमतौर पर शहर में सबसे मजबूत तिजोरियां और लोकर बोक्स होते थे । इस कारण से, कई लोग अपना सोना चांदी या सिक्के हिफाजत के लिए तिजोरीमें रखने के लिए आते थे । उस के बदले में एक कागज की चिठ्ठी मिलती थी जीस पर सोने का वजन आदी लिखा होता था, चिठ्ठी वापस करने पर वो सोना वापस करने का वादा होता था । दुसरे वो लोग भी आते थे जीन को सोने पर उधार धन की जरूरत थी । उन की चिठ्ठि में व्याज के साथ धन मिलने पर सोना वापस करने का वचन होता था ।

पहले प्रकार की वचनपत्री एक प्रारंभिक नोट था जो बाजार में चलने लगा । जीसे सोना चाहिये था वो जौहरी से सोना ले सकते थे । लेकिन जनता को लगा ये तो अच्छा तरिका है, छोटे बडे सोने के जथ्थे पर चिठ्ठियां कटाने लगे, जौहरी के बाप का क्या जाता था, चिठ्ठियां बनाने लगे, किसी की चिठ्ठी खो जाती थी तो उतना फायदा जौहरी को हो जाता था, सोना वापस नही करना पडता था और वापस देने पर सर्विस के बहाने थोडा सोना काट लेने लगे थे या अशुध्धि मिला देते थे । जनता के लिए बहुत अच्छा हो गया, नोट जेब में भी रख सकते हैं, बाजार जाते समय राजा के बनाये भारी भरकम सिक्कों की थैली साथ ले जाने की जरूरत नही रही ।

एक नया रिवाज बना, जौहरियों की इज्जत बढने लगी, जनता का भरोसा भी बढा । जीस आदमी को वाकई में सोने की जरूरत थी वही अपना सोना वापस मांगता था वरना नोट घरमे ही रखते थे । जनता और बाजार ने उस सिस्टम को स्विकार लिया । जब कोइ जौहरी के पास अपने ही नोट ले के गहने बनवाने के लिए जाता था तो मन ही मन मुस्काता था क्यों की जौहरीओं ने दुसरे छोटे बडे व्यापारियों को दूसरी प्रोपर्टी पर हजारों लाखों का कर्ज देकर बाजार में नकली नोट उतार दिये थे, उस यकिन के साथ की अब ९० % जनता अपना सोना वापस नही मांगेगी जो १० % मांगने आयेन्गे उसे दे दिया जायेगा ।

फिर तो बहुत नाटक हुए, बॅन्करों ने जौहरीयों की पोल खोली तो अपना सोना मांगते जन समुह के डर से भागना पडा, बॅन्करों ने वही सिस्टम अपनाया । छोटे बॅन्करों की पोल बडे बॅन्करो ने खोली तो बडे बॅन्करो के आगे सरेन्डर होना पडा। बडे बॅन्करने राज के दरबार में रहे अपने प्यादों का उपयोग कर के कागजी नोट को पूरे राज्य में स्विकार करवाया और इज्जत दिलवाई ।

ये बडे बॅन्क थे बॅन्कर माफिया रोथ्चिल फेमिली के । इन्ही बेंकरों का सिस्टम पूरे युरोपमें चलने लगा । हिटलर ने तोडना चाहा तो दुसरा विश्वयुध्ध इन बॅन्करों ने ही करवाया ।

इन बॅन्करों ने वही पूरानी जौहरी वाली टेक्निक अपनाते हुए नोट बनाने के लिए फॅड रिजर्व बनाया जो थोक में नोट बनाने की परमीशन देती है अपनी ही सेन्ट्रल बेन्कों को जो देश विदेश में फैले हुए हैं । उनमें से भारत का रिजर्व बेन्क भी है । देश के सोने के अवेज में या अन्य संसाधन पर वो सब सेन्ट्रल बॅन्क फॅड से परमीशन मांगते हैं अपने अपने देश की करंसी छापने के लिए । दुनिया के अर्थतंत्र का कबजा करने के लिए, जगत के देशों पर दादागीरी करने के लिए युएन नाम की संस्था बनाई, अमरिका जैसे प्यादे देश को सशक्त बनाया, नाटो की सेना बनाई । अब सोने के मामले में उन की खूद की पोल खूली है तो सोना पाने के लिए हाथपांव मार रहे हैं और देश विदेश के अपने प्यादे राज नेताओं के जरिये उन देशों का सोना लूटने की कोशीश कर रहे हैं ।

भारत की रिजर्ब बेन्कने पद्मनाभ मंदिर को लूटने प्लान तो बना ही लिया है साथ में शीरडी, तिरुपति, सिध्धि विनायक, नटराज मंदिरों को भी कहा है सोना देने के लिए । सोने को इम्पोर्ट किये बीना ही भारत की जनता की सोने की डिमांड पूरी करना है ।

कितना बडा भद्दा मजाक ! ! एक तरफ भारतिय नागरिक सोना ना खरीदे ऐसी सलाह दी जाती है, नागरिकों को रोकने के लिए सोने पर कितने प्रतिबंध लगा रहे हैं तो मंदिरों का सोना हडपने के लिए बेचारे नागरिक याद आये । कौन नागरिक मंदिरका लूटा सोना खरिदना चाहेगा । हम जानते हैं मालिको कों सोने की खेप भेजनी है ।

मामला सेन्सिटिव है ऐसा बोलकर नाम नही बताने की बात कह कर एक बॅन्कर बोलता है मंदिरमें पडा निर्जिव सोना अभी रुपये की हालत सुधार सकता है । रे मुर्ख, मंदिर के सोने का क्या संबंध है रूपये से ? क्या मंदिरों के सोने के अवेज में रूपये छापे थे ? छापे तो तो पूछने की भी जरूरत नही समजी ? हवा के भरोसे ही नोट छाप दिये, अब मालिकों की हवा निकल गई तो तुम लोगों की भी हवा निकल गई और हवा का गॅप मंदिरों की मिल्कर से भरना चाहते हो । जरा चर्च और मस्जिदबालों को भी पूछ लो मेरे से भी तगडा जवाब मिलेगा ।

दुसरा बेन्कर कहता है तिरुपति दुनिया का सबसे धनवान मंदिर है, लगभग १००० टन सोने का मालिक है । पूरे देश के पास १८००० से ३०००० टन है । अभी मंदिरों के ट्रस्टी तैयार नही है ।
अभी आरबीआई का ऐसा कोइ प्लान नही है, आरबी आई से ऐसी कोइ चर्चा नही हुई ।

आरबी आई का प्लान नही है तो ऐसी खबर क्यों आई मिडिया में ? जनता का रिएक्शन जानना चाहते हो ? आरबीआई से चर्चा कर सके ऐसा तू बडा व्यक्ति, मंदिरों के सोने के कयास निकालता आदमी, क्या हवा बना रहा है मंदिरों से सोना हडनने की ? नागरिकों का ध्यान आशाराम पे लगा दो और पिछे से मंदिर को लूट लो, आसान रहेगा ।

जनता या मंदिर सोना जरूर देते, लेकिन लेनेवाला सुभाष बोज होना चाहिए, हजारों भामाशाह है भारत में राणा प्रताप तो लाओ । चोर के हाथ सोना कौन देगा ?

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