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कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना-पानी और मल उछाल राजनीति ।

भारत बाप है, मा नही
भारत बाप है, मा नही
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सरकार जनता के जीवन में दखल पर दखल दे रही है और जनता को खूद खूजली है सरकारें हमारी जिन्दगी में दखल करें ।

सरकार ने आदमी के खानपान में बहुत दखल दी है । किस से खाना छीनना है कीसे टेम्पपररी किलाना है उस बात पर सरकार सोचती ही रहती है । खाने के लिए सरकार को दोष दो, क्यों की मेहंगाई बढाने का मूल कारण सरकार ही है । एक साईड से खाना छीन रही है और दूसरी साईड से खाना भीक में देने का वादा करती है । लेकिन टोइलेट के लिए भी सरकार दखल दे ? हम कह सकते हैं आदमी ने घर बना लिया टोइलेट नही बना सकता ? इतना दम नही तो कुछ लोग मिल के साजा टोइलेट बना सकते हैं । लेकिन इन्टरेस्ट ही नही, फोगट का कोइ कर दे तो महाराज की तरह बिराजमान हो के टोइलेट कर लेन्गे । लेकिन असल बात वो भी नही है बात कुछ अलग है ।

सन ७८,७९ और ८० में कोलेज की तरफ से, हर साल दस दिन के लिए , हमे सेवा काम के लिए गांव में भेजा जाता था, वहां टोइलेट के लिए खड्डे खोदने होते थे । दो बार आदीवासी गांव में गये एक बार गांधी के डांडी के पास कराडी गांव गये जहां गांधीस्मृति की बहुत बडी जगह है । सरकार का कोइ विषेश प्रोग्राम था गांधीवादी भाषणों से बच्चों का सर खाने का । गांधी की दो लाठी मे से एक लाठी भी आई थी भाषण करने के लिए । दोपहर तक गांव के घरों में जा कर टोइलेट के खड्डे करो और फिर शाम तक भाषण सुनते सुनते बैठे बैठे ही सो लो । रात मे फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम हम लोगों के हवाले, मजा ही मजा !

दो आदीवासी गांव मे एक भी जगह कोइ भी घर का मालिक हम लोगों को पानी के लिए भी नही पूछते थे । प्यास लगी तो खूद घरमें घुस कर पी लेते थे । आज याद करता हुं और समजने की कोशीश करता हुं तो लगता है हम लोग उनके लिए अनचाहे मेहमान ही थे, वो टोलेट बनवाना नही चाहते थे, हमारे साहब लोगों ने उनको समजाया होगा तो अधुरे मन से हम को घर में घुसने दिया होगा ।

एक गांव में पूरे कपडे पहने हुए ५०% आबादी थी उन मे से एक दुकानदार था और वो हमारे सर से बात कर रहा था । भाई, आपने हमारे गांव की जमीन और खेत देखे, बहुत फलद्रुप जमीन है लेकिन जनता सच्ची मेहनत नही करती और पानी का सवाल भी है, बारीश पर निर्भर रहना पडता है । दुसरी बात, यहां के लोग टोयलेट का क्या करेंगे, टोयलेट में जीतना पानी लगता है उतना पानी कहां से लायेन्गे ? पीने का पानी जहां मुश्किल से मिलता हो तो टोयलेट की लग्जरी कोइ काम की नही, लौटा ही ठीक है इन लोगों के लिए ।

कराडी गांव आदीवासी या गरीब गांव नही था, एक दुबई रिटर्न लडका मानो हमारे केम्प का एक सदस्य ही बन गया था । हमारे सब कार्यक्रम में भाग लेता था । उस के अनुसार उसके गांव के ज्यादातर आदमी मिडलइस्ट में नौकरी करते हैं ।

पैसे वाले घर भी अपने बूते पर टोयलेट ना बनाये उसका कारण पानी ही होना चाहिए । गांवों में टोयलेट कहां बनाना, जगह की कोइ कमी नही होती, और बजेट भी बडा नही है जीस से पैसे का बहाना निकाला जाये, बात अटकती है पानी पर । आज गुजरात के गांवों में नर्मदा का पानी आ गया है, किसी को कहना भी नही पडा है कि अपने अपने टोयलेट बनालो, जनताने अपने आप बना लिये हैं ।

और शहरों में तो घर घर में टोयलेट होते ही है, जो फरियाद उठती है वो अवैद्य जोपडपट्टी से उठती है । वहां शुध्ध पोलोटिकल मामला है, वोटके लिए जोपडपट्टी बसने देना और गटर और पानी की सुविधा ना दे पाना ये सारा मामला अलग है, इसे व्यापक द्रष्टि से नही देखना चाहिए ।

एक बात मेरे ध्यान में आई है । ग्लोबलिस्टों ने एक बात चलाई है की पानी आम जनता को फ्री में अक्सेस करने के अधिकार नही होने चाहिए । एक पेयजल बनाने वाली मल्टिनेशनल कंपनी के सी.ई.ओ ने अगवाई ली है । उसे गालियां पडी तो अभी चुप है लेकिन वो शैतान चुपके से उस दिशा में जरूर जायेंगे ।
भारत में महाराष्ट उन शैतानों के लिए टेस्टिन्ग सेन्टर है । महाराष्ट्र के एक शहर में टेस्ट कर के देखा । शहर का सारा पानी सप्लाय एक खाजगी कंपनी को देना चाहा । पानी का आनेवाला नया रेट देखकर जनता भडक गई, आंदोलन हुआ और शैतानों का वो टेस्ट फेइल कर दिया ।

जैसे जैसे पानी का कंजम्प्शन बढेगा वैसे वैसे शातिर दानव की नजर पानी पर खराब होती जायेगी । कुएं खोदना अवैद्य कर दिया जायेगा, बहाना बतायें पानी का भूतल गहराई में चला जाता है । नदी का पानी लेना गुनाह हो जायेगा बहाना होगा की नदी पर मल्टिनेशनल कंपनी का हक्क है । बरसाती पानी के लिए बताया जायेगा, जैसे आप नोट नही छाप सकते, इकोनोमी सिस्टम खतम होता है, ऐसे ही बरसाती पानी भी नही ले सकते, पानी का सिस्टम तूट जाता है ।

पानी सप्लाय के मिटरिन्ग का आलाप भी शुरु हो गया है उस की जरूरत भी है लेकिन ये सारी बातें एक दिन माफियाओं के पक्ष में ही जानेवाली हैं । भारत में आज मानव मल को उछाला गया है ना जाने किस कीस पर गीरने वाला है ।

आखिर एक महिला पर गीर ही गया —-शौचालय की कमी की वजह से हो रहा है रेप : गिरिजा व्यास कांग्रेसी मंत्री ———

बाकी तो दूसरे नेताओं पर भी गीरा है, मिडिया पर गीरा है, मिडियाने जनता पर ही गीरा दिया है ।

जनता को समज में ही नही आ रहा है जानवर के गोबर से खराब आदमी का गोबर क्युं ? क्या आदमी जानवर से भी गया गुजरा हो गया है ।

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना ।

Access To Water Should Not Be A Public Right, Nestle CEO

http://beforeitsnews.com/self-sufficiency/2013/04/access-to-water-should-not-be-a-public-right-nestle-ceo-2456218.html

Nestle Chairman: Water Should Not be a Human Right

http://politix.topix.com/homepage/5677-nestle-chairman-water-should-not-be-a-human-right

The idea that water is a human right is “extreme,” claims Peter Brabeck, chairman of Nestle.

Water is a commodity with a market value like any other foodstuff, says Brabeck. “Personally I believe it’s better to give a foodstuff a value so that we’re all aware that is has a price,” he concluded, in remarks that could be construed as supportive of the idea of privatizing the world’s water supply.

मानव को फ्री में पानी पिने का अधिकार है उसमें इस साक्षस को “अति” लगती है । पानी में भी कोमोडीटी और बाजार खोजता है ।
पानी में वेल्यु ढुंढता है उस वेल्यु को डकारने का ही इरादा है और कुछ नही ।

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